शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

ख़त - 7 एक अमरीकी सैनिक का प्रेम पत्र





प्रिय !

जब मैं फौज में
हुआ था भर्ती
तुम नहीं थी लेकिन
तुम्हारे होने का एहसास था
एहसास था कि
हम भी न्यूयार्क सिटी के मध्य में
लेंगे एक आलीशान घर
जिसमे तुम होगी
और होंगे मेरे बच्चे
जिन्हें मैं पूरी आज़ादी दूंगा
अपने बेडरूम में घुसने की
वहां होंगे हम और तुम और हमारे कई बच्चे.
आज बहुत याद आ रही हो तुम
और एअरपोर्ट पर विदा होते हुए
किसी अनाम देश के लिए
जहाँ मेरा युद्ध उनसे है
जिन्हें मैं नहीं जानता
जिनके बारे में मैंने नहीं सुना
जिन्होंने नहीं पहुंचाई कभी
तुम्हे कोई तकलीफ

जब भी मेरी गोली से
मरता है कोई अजनबी
उसके शव पर विलाप करती स्त्रियाँ
मुझे तुम सी लगती हैं
और बच्चे बिल्कुल ऐसे लगते हैं
मानो वही है जिसे छोड़ आया था मैं
तुम्हारे गर्भ में.

यहाँ की धरती
वैसी नहीं जैसे मेरा गाँव
वेरमोंट शहर से कोई २०० मील उत्तर
मैं अपने धरती की
करना चाहता था सेवा
अपने अमेरिकन साथियों के लिए
दे देना चाहता था अपने प्राण
मैं तुम्हारे साथ
अपने शहर जिसमे एक चौथाई लोग
बुज़ुर्ग हैं और हैं अपने बच्चों से दूर
करना चाहता था उनकी सेवा
लेकिन त्रासद हो गया है मेरा जीवन
कि सिखा दी गई है मुझे
गोली, बारूद, बम की भाषा
मैं हथियारों को चलाने और
उनकी मारक क्षमता को जांचने का यन्त्र हूँ.

प्रिये
तुम्हे बहुत प्रिय लगती थी
मेरी पीतल सी आँखें
कहती थी तुम
इनमें बसता है
झील के उस पार का इन्द्रधनुष
कहती थी तुम
एमिली डिकिन्सन की कवितायें हैं इनमे
अब इन आँखों में
रेत बसती है रेगिस्तान की
कतई गीली नहीं है जो

विश्वास जैसे शब्दों को
निकाल दिया गया है
मेरे शब्दकोष से
जो शब्द भर दिए गए हैं
उनका कोई मानवीय तर्क है ही नहीं
कोई अर्थ नहीं है
बस याचना है आँखों में
चीत्कार है

प्रिये
मुझे जिन्होंने झोंका है
इस युद्ध में
उन्होंने नहीं लड़ी कभी कोई लड़ाई
उनकी यात्राओं से पूर्व होते हैं रास्ते खाली
परिंदों के पर भी काट दिए जाते हैं
एक बड़े लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करने वालों के
रास्ते में नहीं आता कोई लोक
इन्होने देखे नहीं कभी कोई युद्ध का मैदान
नहीं जानते वे
किसी रेगिस्तान में प्यासे हताश को उड़ा देना गोली से
कितना मर्मान्तक है

थक गया हूँ मैं
एक अनाम देश में
अपने जैसे मानव जाति के विरुद्ध ही
न ख़त्म होने वाले युद्ध से
निरुद्देश्य मेरा जीवन
कब समाप्त हो जाए तय नहीं यह
लेकिन मुझे पसंद नहीं कि
मेरे बाद दिया जाए तुम्हे मोटा मुआवजा
या करो तुम ह्रदय विदारक चीत्कार
या शामिल हों मेरे दोस्त कैडिल मार्च में
क्योंकि मैं यदि मरूँगा तो
किसी के मारने के क्रम में ही
किसी आतंकवादी सा.

मैं एक सैनिक से
बना दिया गया हूँ स्वचालित हथियार प्रिये !
नहीं रहा मैं पीतल की आँखों वाला
तुम्हारा चार्मिंग डार्लिंग
वीकेंड थियेटर के किसी रोमैंटिक नाटक का पात्र सा|
                                                    -अरुण चन्द्र राय
                                                   


         [ कवि और कहानीकार  निर्मल गुप्त जिला  उद्योग केंद्र गाजियाबाद में सहायक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं | सभी स्तरीय पात्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं |यह कविता उनके सौजन्य से प्राप्त  हुई है इसके लिए मैं उनका आभारी हूँ |]

1 टिप्पणी:

  1. मुझे जिन्होंने झोंका है
    इस युद्ध में
    उन्होंने नहीं लड़ी कभी कोई लड़ाई
    उनकी यात्राओं से पूर्व होते हैं रास्ते खाली
    परिंदों के पर भी काट दिए जाते हैं
    एक बड़े लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करने वालों के
    रास्ते में नहीं आता कोई लोक
    इन्होने देखे नहीं कभी कोई युद्ध का मैदान
    नहीं जानते वे
    किसी रेगिस्तान में प्यासे हताश को उड़ा देना गोली से
    कितना मर्मान्तक है

    बेहतरीन नज़्म है !
    कमाल की भावाभिव्यक्ति ,दुख ,आक्रोश ,पीड़ा सभी का बेहद उम्दा चित्रण
    बेह्तरीन रचना के लिये बधाई

    जवाब देंहटाएं