अपनी बात
अपने वाम पंथी मित्रो का भी अजब हाल है | सोचा था कि जनवादी लेखक संघ की मेरठ इकाई का ब्लॉग होगा तो प्रतिबध्द लोगों को जोड़ने में मदद मिलेगी, पर सदा की तरह सबसे ज्यादा निराश उन्होने ही किया| न तो उन्होंने ब्लॉग लेखन में रूचि ली न किसी प्रकार की प्रति क्रिया ही दी | कुछ तो ऐसे वाग्वीर हैं जो सब समस्याओं का हल गरम -गरम बहस और भाषण से करने के लिए हर वक्त तैयार रहते हैं | साहित्य में ये सिर्फ मार धाड़ वाली फिल्मों की तरह एक ही रंग रस प्रगति-क्रान्ति चाहते हैं | प्रेम, सोंदर्य, प्रकृति पर लिखना उनकी निगाह में पथभ्रष्ट होना है | मेरी समझ में नहीं आता कि कोई कब तक चिल्लाता रहेगा और क्या चिल्लाकर ही अपनी बात कही जा सकती है | माना कभी कभी अपनी बात को स्पष्ट करने या अपनी बात पर जोर देने के लिए जोर से बोलना पड़ता है | पर कभी कभी ही | नियमित वार्ता सम स्वर में हो सकती है | जिंदगी की तरह साहित्य में भी कोई एक भाव स्थायी नहीं रह सकता | वैसे भी प्रेम मोहब्बत की कविता लिखना न कोई अपराध है और न कहीं से वामपंथी होने में बाधक है | जो एइसा सोचते हैं, वे मुझे कठमुल्ला दिखाई देते हैं और इनके इस तरह के कठमुल्लेपन का मैं हमेशा विरोधी रहा हूँ | इसी लिए ब्लॉग लेखन में मैंने पूरी स्वतंत्रता रखी है और अपनी तरफ से स्थानीय साहित्यकारों को रचनाधर्मिता के आधार पर जोड़ने का प्रयास किया है | इसके चलते जहाँ वामपंथी मित्रों से उपेक्षा मिली है वहीँ अन्य लोगों द्वारा मुक्त कंठ से सराहना मिली है | अपनों की यह उपेक्षा शूल सी चुभती है |
नहीं साहब हम आप की उपेक्षा नहीं करते हैं और आपके प्रयासों की सराहना एवं प्रशंसा अपने ब्लाग में भी करते रहते हैं.कृपया निराश न हों.आप अपना स्वतंत्र लेखन जारी रखें.
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