गुरुवार, 8 मार्च 2012

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस और होलिका पर्व पर विशेष आलेख

                     















                हमारी सांस्कृतिक  परम्परायें और महिला अधिकार 
      पुरूष प्रधान समाज में महिलाओं के साथ सदियों से दोयम दर्जे का बर्ताव किया जाता रहा है। इतिहास और संस्कृति की पडताल करेंगें तो पायेंगें कि इस भेदभाव की जडें बहुत गहरी हैं और ये जन मानस में इतनी मजबूती से जड पकड गयी हैं कि इनके विरूद्ध आवाज उठाने पर अनेक तरह की मुश्किलों का सामना करना पडता है। शोचनीय स्थिति यह है कि उत्पीडन का शिकार स्त्री वर्ग भी अपनी स्थिति से क्षुब्ध होने या उससे उभरने के प्रयास करने की अपेक्षा उसी में सन्तोष किये है और कई बार तो उसे ही अपना सम्मान और गौरव मान लेता है। उसके आदर्श हैं सीता,सावित्री,उर्मिला,तारा। इनमें क्या आदर्श है जीवन भर अपमान सहना और पति की मान रक्षा के लिये स्वयं को बलिदान कर देना। सीता को देखिये जिसका सारा जीवन ही चुपचाप अन्याय सहते हुये बीत गया, जिसने जन्म से लेकर मृत्यु तक कोई सुख न देखा हो जिसे महारानी होने पर भी विधिक अन्तिम संस्कार न तक ना नसीब हुआ हो उससे अभागा  भी कोई हो सकता है।उससे ज्यादा भी किसी ने अन्याय और दुख सहा है। बेजुबान सीता आदर्श है, बेजुबान उर्मिला आदर्श है, वो सब आदर्श स्त्री हैं जो आवाज नहीं उठाती चुपचाप अन्याय सहन करती हैं लेकिन जो आवाज उठाती हैं, पुरूष की मर्जी के बिना जरा भी इधर उधर चलती हैं वो आदर्श नहीं हैं। द्रोपदी,रेणुका,सूर्पनखा आदर्श नहीं है।
        राम जब सीता के अपहरण से स्वयं को अपमानित अनुभव करते हैं तब रावण को दण्डित  करने लिये युद्ध लडकर उसका वध करते हैं और रक्ष संस्कृति का भी विनाश भी कर डालते हैं। लेकिन सीता के लिये इतनी ही चाह है कि उसके चरित्र पर उंगली उठाये जाने पर उसके साथ वनगमन नहीं करते उसी का परित्याग कर देते हैं और दुबारा भेंट होने पर पुनः ऐसी असहज स्थिति न हो इसलिये हमेशा के लिये उससे छुटकारे का प्रबन्ध कर देते हैं।[ जब वो परशुराम हैं{दोनों को विष्णु का अवतार बताया जाता है} तो बदचलनी के आरोप में पिता के आदेश से अपनी मॉं रेणुका का सिर काट लेते हैं।] अहिल्या अपने स्खलित आचरण से गैरों की ठोकरे खाने के लिये अभिशप्त है। वह ठोकरे खाने पर आदर्श है मुक्त आचरण के लिये नहीं तब वह निन्दित ही है।
          एक ओर कथा है होली पर्व की होलिका के दहन की। कहा जाता है कि दैत्यराज हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद ईश्वर भक्त था। वह अपने पिता की सत्ता को ना मानकर देवों की सत्ता को मानता था। देवों और दैत्यों का खानदानी बैर था । हिरण्यकश्यप ये कैसे सहन करता कि उसका पुत्र ही उसके खानदानी दुश्मनों से से मिल जाये और दैत्यों के विरूद्ध आचरण करे। उसने प्रहलाद को समझाने की बहुत कौशिश की लेकिन वह नहीं माना । उसे तो देवताओं की शह थी वह क्यों मानने लगा। तब हिरण्यकश्यप ने उसे दण्डित करने का निश्चय किया। अपनी बहिन होलिका को उसने आदेश दिया कि वह प्रहलाद को आग में भस्म कर दे। काम ठीक प्रकार हो इसलिये होनिका को स्वयं आग में कूदने के लिये कहा गया। उसने बहुत आनाकानी की किन्तु उसकी एक न चली उसे राजा का आदेश मानना ही पडा। अब विभीषण हो या प्रहलाद अपने राज्य के गददार और भेदिये तो देवताओं के प्रिय होने ही थे वही सच्चे भक्त हैं प्रहलाद भी देवताओं का भक्त था सो वो देवताओं की कृपा से बच गया। होलिका का सहायक कोई न था वह आग में जल मरी। सोचने की बात ये है कि प्रहलाद को लेकर आग में कूदने के लिये होलिका को ही क्यों चुना गया ? राजा तो किसी को भी आदेश दे सकता था। अपने परिवार के दो दो सदस्यों का बलिदान भले ही वे कितने भी बुरे क्यों न हों राजी खुशी का काम नहीं हो सकता था। इस सम्बन्ध में राजस्थान में एक लोक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि होलिका का अपने पडौसी राज्य के राजकुमार इलोजी से प्रणय सम्बन्ध था। होलिका का भाई दैत्यराज हिरण्यकश्यप इस प्रणय सम्बन्ध से नाखुश था। उसने इससे निबटने का निश्चय किया। उसने होलिका का इलोजी से विवाह घोषित करने की घोषण कर दी। जिस दिन इलोजी बारात लेकर आने वाले थे उसी दिन  हिरण्यकश्यप ने अपनी बहिन होलिका से  देवताओं के हिमायती प्रहलाद को अग्नि में जला देने का आदेश दिया । कार्य की सफलता के लिये उसने यह कार्य होलिका को स्वयं करने का आदेश दिया । होलिका ने ऐसा करने में आनाकानी की। वह हिरण्यकश्यप के मनोभावों से शंकित थी । हिरण्यकश्यप ने धमकाया कि वह अगर  ऐसा नहीं करेगी तो इलोजी से उसका विवाह नहीं होने देगा। होलिका को अग्निकवच से रक्षा का भी भरोसा दिलाया गया।
           अपने प्रेम के वशीभूत और  राजा के आदेश से विवश होकर होलिका अग्नि में कूद पडी और जैसा कि सदैव होता आया है देवताओं का अग्नि कवच उसके होनिका के कुछ काम ना आया। वक्त पडने पर वो उसके बजाय देवताओं के भक्त प्रहलाद के काम आया । अग्नि से बचाव का वरदान तो होलिका को मिला था फिर भी होलिका जल गयी और प्रहलाद बच गया।देखा देवताओं का करिश्मा वरदान किसी को काम किसी ओर का। ये भी ध्यान नहीं रखा कि तुम्हारी मूछों की लडाई में एक बेकसूर निरीह स्त्री मारी जा रही है। लेकिन वो भी कहॉं उन्हें याद कर रही थी वो भी तो अपने प्रेमी इलोजी के प्रेम में मग्न थी । उस प्रेम दीवानी को अपने प्रेम  के अलावा कहॉं कुछ सूझ रहा था।देवताओं की नजर में  भी  उसे मर ही जाना चाहिये था सो वो मर गयी।मुक्त प्रेम की सदियों से ऐसी ही सजा तय है। ये ऑनर किलिंग हमारी संस्कृति है  जिसका हम हजारों सदियों से उत्सव मना रहे हैं।माना कि वो तो प्रेम में अन्धी हो गयी, पर तुम तो अन्धे नहीं हुये | तुमने तो अपने स्वार्थ में अन्धें होकर षडयन्त्र पूर्वक उसे जला जला कर मार दिया। मरकर होलिका माई हो गयी। जिसे जिन्दा जला दिया गया वो पूजनीय है। स्त्रियॉं पूरे श्रंगार करके, नाच गाकर होली की पूजा करती हैं। मर्द जश्न मनाते हैं,मदमस्त होकर,अश्लील गीत गाकर, अबीर गुलाल उडाकर। मर्दों का जश्न समझ में आता है लेकिन स्त्रियों का उत्सव विचारणीय है। पता नहीं वो होलिका दहन को किस भाव से लेती हैं। होलिका का बलिदान हॅंसी खुशी का बलिदान नहीं है। लेकिन सती के नाम पर स्त्री का जो दहन किया जाता है उसमें भी स्त्रियों को ऐसा ही आडम्बर पूर्ण महिमा मण्डन होता है। उनके अन्दर हृदय में दर्द का कैसा ही समन्दर उमडता रहे पर ऑंखों में एक बूँद ऑंसू लाना अपशकुन होगा, पुरूषों के इसी आदेश को ध्यान में रखते हुये हॅंसी खुशी का अभिनय करना स्त्रियों की सदियों की से चली आ रही विवशता है। या हो सकता है कि वे ये याद करती हों कि प्यार किया तो यही सजा मिलेगी जो हमें भी मन्जूर है। लेकिन किसी भी तरह यह गौरव की बात नहीं है। गौरव की बात तब होती जब प्रेम के लिये लडते हुये होलिका जल गयी होती।  बहरहाल होलिका जल गयी बस सन्तोष की बात ये है कि इलोजी को  वहॉं पहुचने पर जब होलिका के जलाकर मारने का पता चला तो वो बहुत दुखी हुआ और फिर सामान्य जीवन नहीं जी सका। होलिका के विरह में दुखी होकर वैरागी बन गया और अपना राज्य छोडकर वन में प्रस्थान कर गया।
  हमारे धर्म, संस्कृति, इतिहास, समाज में अनेक कथा प्रसंग हैं जो नारी उत्पीडन की दारूण कथा कहते हैं। दुख ये है कि उन्हें महिमामण्डित किया जाता है। इस पर जो सवाल उठाये वो धर्मद्रोही है। लेकिन जो शर्मिन्दा होने वाले काम है उन पर गर्व कैसे करें?  ऐसा नहीं है कि स्त्री स्वाभिमान की उज्जवल कथायं ना हों पर उन्हें प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं है उल्टे उन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता है।
             
  स्त्री स्वातंत्रय के एक पौराणिक प्रसंग का उल्लेख करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ  मेरे विचार से यह आधुनिक नारी की मानसिकता को बडे अच्छी तरह व्यक्त करता है। राजा पुरू और उर्वशी एक अनुबन्ध के तहत सानन्द रहते थे। पुरू द्वारा अनुबन्ध भंग करने पर उर्वशी उसे छोडकर चल देती है। पुरू पुत्र का हवाला देकर उसे रोकना चाहता है किन्तु वह ऐसी किसी जिम्मेदारी को स्वीकार नहीं करती और अपनी स्वतंत्रता को बरकरार रखते हुये चली जाती है। पुरू को ही सन्तान का पालन पोषण करना पडता है। ये प्रसंग प्रकारान्तर से यह बताता है कि सन्तान का पालन पोषण स्त्री के पॉंवों की बेडी नहीं बन सकता। अगर पुरूष उस जिम्मेदारी से स्वयं को मुक्त रखने में कोई ग्लानि नहीं अनुभव करता तो स्त्री भी ऐसा कर सकती है।इसलिये पुरूष को भी बिना किसी शहादत का भाव लिये अकेले ही इस जिम्मेदारी को उठाने के लिये तैयार रहना चाहिये बल्कि उठा ही लेना चाहिये। क्योंकि स्त्रियॉं कोई पेड नहीं हैं जो अपने आप फलती हों वे पुरूष के कारण ही गर्भ धारण करती हैं। इसलिये सन्तान के प्रति उनका दायिज्व भी ज्यादा ही बनता है कुछ कम नहीं। लेकिन पुरूष ने मातृत्प को महिमामण्डित करके स्वयं को सन्तान के लालन पालन की तिम्मेदारियों से मुक्त कर लिया।  एक यही तो बन्धन है जो स्त्री को भावनात्मक रूप से कमजोर करके पुरूष की तमाम तरह की बंदिशे स्वीकारने के लियेे विवश करता है। उर्वशी आधुनिक युग की उन नारियों की प्रतिनिधि है जो अपनी स्वतंत्रता पर अपनी इच्छा के विरूद्ध दूसरे के किसी बन्धन को स्वीकार नहीं करती।
        स्त्री की स्वतंत्रता के सम्मान का दूसरा प्रसंग इतिहास से लें। हमारे यहॉं सम्राट अशोक महान शासक हुआ है। उसी के समय में कलिंग में एक स्त्री राज्य करती थी जिसके शासन में प्रजा सब प्रकार से सन्तुष्ट और सुखी थी। अशोक को अपने एकछत्र राज्य में कलिंग कॉंटे की तरह चुभता था। उसने कनिंग पर आक्रमण कर दिया । ये भी नहीं सोचा कि एक स्त्री पर आक्रमण कर रहा है या अपना इतना विशाल साम्राज्य होते हुये भी उसके छोटे से राज्य को हडपकर कुछ गलत कर रहा है। ऐसा राज्य जिससे उसका कोई झगडा ही नही है। कनिंग पर आक्रम बाल दिया भयानक युद्ध छिड गया। कलिंग की जनता अपनी वीरांगना रानी के नेतृत्व में आखिरी दम तक लडी। जब तक लडने योग्य कोई वहॉं रहा यह लडाई चलती रही। रणस्थल लाशों से पट गया  लेकिन अशोक को सदबुद्धि न आयी। सदबुद्धि आयी तो तब आयी जब कोई लडने वाला ही न बचा। युद्ध बन्द हो गया। अब सामने लाशें थीं और जनहीन कलिंग का राज्य था। अशोक को वैराग्य हो गया लेकिन इतना नहीं कि राज्य छोड देता।अशोक ने कलिंग को अपने साम्राज्य में मिला लिया। लेकिन ये सबक जरूर मिल गया कि अब लडाई से काम नहीं चलेगा। ये सबक किसी वीर राजा से लडकर नहीं लिया गया एक वीरागंना रानी ने यह पाठ पढाया कि औरतें चूडियॉं ही नहीं पहनती, सेज ही नहीं सजाती अपने अधिकारों की रक्षा के लिये लडकर मरना भी जानती हैं। लेकिन उस जैसी वीरांगना को ना महान बताया गया ना आदर्श ही बनाया गया। आदर्श और महान हैं रामचन्द्र और अशोक। महान आक्रमणकारी, विराट साम्राज्यवादी। वनवासी,गिरिवासी,तटवासी जनों के संहारक,बहुरंगी,बहवर्णी संस्कृति विनाशक।
      बाद के इतिहास में चॉंदबीबी और रजिया सुल्ताना हैं, दुर्गा वती और लक्ष्मीबाई हैं, अहिल्याबाई और रमाबाई हैं।इन्दिरा गॉंधी है,बचेन्द्री पाल है,पी0टी0उषा है, सानिया मिर्जा है एक लम्बी फेहरिस्त है उन सफल महिलाओं की जो पुरूषों की सत्ता को चुनौति देकर उनसे आगे निकल गयी । अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस उनको सैल्यूट मारने का दिन है जो कह सकती हैं कि तुमने हमें भले ही सदियों दबाया हो, सताया हो पर तुम हमारी बराबरी नहीं कर सकते। हम तुमसे बहुत आगे हैं, बहुत उज्ज्वल हैं, बहुत उचे हैं।    
                                                                                                                       अमरनाथ'मधुर'


ہماری ساسكرتك پرمپرايے اور خواتین کے حقوق 
      مرد پردھان سماج میں خواتین کے ساتھ صدیوں سے دوسرے درجے کا برتاؤ کیا جاتا رہا ہے. تاریخ اور ثقافت کی کو بلایا گیا تو کریں گے تو پايےگے کہ اس تفریق کی جڈے بہت گہری ہیں اور یہ عوامی مانس میں اتنی مضبوطی سے جڈ پکڑ گئی ہیں کہ ان کے خلاف آواز اٹھانے پر کئی طرح کی مشکلات کا سامنا کرنا پڑتا ہے. قابل رحم حالت یہ ہے کہ اتپيڈن کا شکار عورت طبقہ بھی اپنی حیثیت سے كشبدھ ہونے یا اس سے ابھرنے کی کوشش کرنے کی توقع اسی میں قناعت کئے ہیں اور کئی بار تو اسے ہی اپنا احترام اور وقار مان لیتا ہے. اس کے مثالی ہیں سیتا، ساوتری، ارمیلا، تارا. ان میں کیا مثالی ہے زندگی بھر بے عزتی سہنا اور شوہر کی مان حفاظت کے لئے خود کو قربان کر دینا. سیتا کو دیکھیے جس کی ساری زندگی ہی چپ چاپ ظلم سهتے ہوئے گزر گیا، جس نے پیدائش سے لے کر موت تک کوئی سکھ نہ دیکھا ہو جسے ملکہ ہونے پر بھی قانونی آخری بار رسومات نہ تک نہ نصیب ہوا ہو اس سے بھاگا بھی کوئی ہو کالم و ہے. اس سے مزید بھی کسی نے نا انصافی اور دکھ سہا ہے. بےجبان سیتا مثالی ہے، بےجبان ارمیلا مثالی ہے، وہ سب مثالی عورت ہیں جو آواز نہیں اٹھاتی چپ چاپ ظلم برداشت کرتی ہیں لیکن جو آواز اٹھاتی ہیں، مرد کی مرضی کے بغیر ذرا بھی ادھر ادھر چلتی ہیں وہ مثالی نہیں ہیں. دروپدي، رےكا، سورپنكھا مثالی نہیں ہے. 
        رام جب سیتا کے اغوا سے خود کو بے عزت محسوس کرتے ہیں تب راون کو دےچھت کرنے کیلئے جنگ لڈكر اس کا ودھ کرتے ہیں اور ركش ثقافت کا بھی تباہی بھی کر ڈالتے ہیں. لیکن سیتا کے لئے اتنی ہی چاہ ہے کہ اس کے کردار پر انگلی اٹھائے جانے پر اس کے ساتھ ونگمن نہیں کرتے اسی کا پرتياگ کر دیتے ہیں اور دوبارہ ملاقات ہونے پر دوبارہ ایسی اسهج حالت نہ ہو اس لئے ہمیشہ کے لئے اس سے چھٹكارے کا انتظام کر دیتے ہیں. جب وہ پرشرام هےكردونو کو وشنو کا اوتار بتایا جاتا ہے تو بدچلني کے الزام میں باپ کے حکم سے اپنی م رےكا کا سر کاٹ لیتے ہیں. اهليا اپنے سکھلت طرز عمل سے غیروں کی ٹھوكرے کھانے کے لیے مجبور ہے. وہ ٹھوكرے کھانے پر مثالی ہے آزاد طرز عمل کے لئے نہیں تو وہ نندت ہی ہے. 
          ایک طرف افسانے ہے ہولی تہوار کی هولكا کے دہن کی. کہا جاتا ہے کہ دےتيراج هريكشيپ کا بیٹا پرہلاد خدا پرست تھا. وہ اپنے والد کے اقتدار کو نہ مان کر دےوو کے اقتدار کو مانتا تھا. دےوو اور دےتيو کا كھانداني بیر تھا. هريكشيپ یہ کیسے برداشت کرتا کہ اس کا بیٹا ہی اس کے كھانداني دشمنوں سے سے مل جائے اور دےتيو کے خلاف طرز عمل کرے. اس نے پرہلاد کو سمجھانے کی بہت كوشش کی لیکن وہ نہیں مانا. اسے تو فرشتوں کی شہ تھی وہ کیوں ماننے لگا. تب هريكشيپ نے اسے دڈت کرنے کا فیصلہ کیا. اپنی بہن هولكا کو اس نے حکم دیا کہ وہ پرہلاد کو آگ میں مجسم کر دے. کام ٹھیک طرح ہو اس لئے هونكا کو خود آگ میں کودنے کے لئے کہا گیا. اس نے بہت اناكاني کی لیکن اس کی ایک نہ چلی اسے بادشاہ کا حکم ماننا ہی پڑا. اب وبھيش ہو یا پرہلاد اپنی ریاست کے گددار اور بھےديے تو فرشتوں کے عزیز ہونے ہی تھے وہی سچے مرید ہیں پرہلاد بھی فرشتوں کا مرید تھا سو وہ فرشتوں کی مہربانی سے بچ گیا. هولكا کا مددگار کوئی نہ تھا وہ آگ میں جل مری. سوچنے کی بات یہ ہے کہ پرہلاد کو لے کر آگ میں کودنے کے لئے هولكا کو ہی کیوں منتخب کیا گیا؟ بادشاہ تو کسی کو بھی حکم دے سکتا تھا. اپنے خاندان کے دو دو ارکان قربان بھلے ہی وہ کتنے بھی برے کیوں نہ ہوں راضی خوشی کا کام نہیں ہو سکتا تھا. اس سلسلے میں راجستھان میں ایک لوک کتھا عام ہے. کہا جاتا ہے کہ هولكا کا اپنے پڈوسي ریاست کے راج کمار الوجي سے پري تعلق تھا. هولكا کا بھائی دےتيراج هريكشيپ اس پري تعلق سے ناكھش تھا. اس نے اس سے نمٹنے کا فیصلہ کیا. اس نے هولكا کا الوجي سے شادی کا اعلان کرنے کی گھوش کر دی. جس دن الوجي بارات لے کر آنے والے تھے اسی دن هريكشيپ نے اپنی بہن هولكا سے فرشتوں کے حامی پرہلاد کو آگ میں جلا دینے کا حکم دیا. کام کی کامیابی کے لئے اس نے یہ کام هولكا کو خود کرنے کا حکم دیا. هولكا نے ایسا کرنے میں اناكاني کی. وہ هريكشيپ کے منوبھاوو سے شكت تھی. هريكشيپ نے دھمکی دی کہ وہ اگر ایسا نہیں کرے گی تو الوجي سے اسکی شادی نہیں ہونے دے گا. هولكا کو اگنكوچ سے حفاظت کا بھی یقین دہانی کرائی گئی. 
           اپنی محبت کے وشيبھوت اور بادشاہ کے حکم سے مجبور ہو کر هولكا آگ میں کود پڑی اور جیسا کہ ہمیشہ ہوتا آیا ہے فرشتوں کا آگ کوچ اس کے هونكا کے کچھ کام نہ آیا. وقت پڑنے پر وہ اس کے بجائے فرشتوں کے پرست پرہلاد کے کام آیا. آگ سے بچاؤ کا وردان تو هولكا کو ملا تھا پھر بھی هولكا جل گئیں اور پرہلاد بچ گیا. دیکھا فرشتوں کا کرشمہ بخشش کسی کو کام کسی اور کا. یہ بھی یاد نہیں رکھا کہ تمہاری موچھو کی جنگ میں ایک بے قصور معصوم عورت ماری جا رہی ہے. لیکن وہ بھی كه انہیں یاد کر رہی تھی وہ بھی تو اپنے عاشق الوجي کے محبت میں مگن تھی. اس محبت دیوانی کو اپنی محبت کے علاوہ كه کچھ سوجھ رہا تھا. فرشتوں کی نظر میں بھی اسے مر ہی جانا چاہئے تھا سو وہ مر گئی. آزاد محبت کی صدیوں سے ایسی ہی سزا طے ہے. یہ ہے ہماری سسكرتك آنر کلنگ جس کا ہم ہزاروں صدیوں سے جشن منا رہے ہیں. مانا کہ وہ تو محبت میں اندھي ہو گئی تھه پر تم تو اندھے نہیں ہوئے لو. تم نے تو اپنے مفاد میں اندھے ہو کر شڈينتر پوروك اسے جلا جلا کر مار دیا. مركر هولكا مائی ہو گئی. جسے زندہ جلا دیا گیا وہ پوجنيي ہے. ستري پورے شرگار کرکے، ناچ گاكر ہولی کی پوجا کرتی ہیں. مرد جشن مناتے ہیں، مدمست ہو کر، فحش گیت گاكر، ابير گلال اڈاكر. مردوں کا جشن سمجھ میں آتا ہے لیکن عورتوں کا جشن قابل غور ہے. پتہ نہیں وہ هولكا دہن کو کس انداز سے لیتی ہیں. هولكا قربان هسي خوشی قربان نہیں ہے. لیکن ستی کے نام پر عورت کا جو دہن کیا جاتا ہے اس میں بھی عورتوں کو ایسا ہی اڈمبرپور جلال مڈن ہوتا ہے. ان کے اندر دل میں درد کا کیسا ہی سمندر امڈتا رہے پر آنکھوں میں ایک بود آنسو لانا اپشكن ہوگا مردوں کے اسی حکم کو ذہن میں رکھتے ہوئے هسي خوشی کا اداکاری کرنا عورتوں کی صدیوں کی سے چلی آ رہی بے چینی ہے. یا ہو سکتا ہے کہ وہ یہ یاد کرتی ہوں کہ پیار کیا تو یہی سزا ملے گی جو ہمیں بھی منجور ہے. لیکن کسی بھی طرح یہ فخر کی بات نہیں ہے. فخر کی بات ہوتی جب محبت کے لئے لڈتے ہوئے هولكا جل گئیں ہوتی. بہرحال هولكا جل گئیں بس قناعت کی بات یہ ہے کہ الوجي کو وہاں پهچنے پر جب هولكا کے جلا کر مارنے کا پتہ چلا تو وہ بہت غمگین ہوا اور پھر عام زندگی نہیں جی سکا. هولكا کے وره میں دکھی ہو کر وےراگي بن گیا اور اپنا ریاست چھوڑ کر ون میں روانگی کر گیا. 
  ہمارے مذہب، ثقافت، تاریخ، سماج میں کئی افسانے ایسا موقع ہیں جو خاتون اتپيڈن کی دارو افسانے کہتے ہیں. دکھ یہ ہے کہ انہیں مهمامڈت کیا جاتا ہے. اس پر جو سوال اٹھائے وہ دھرمدروهي ہے. لیکن جو شرمندہ ہونے والے کام ہے ان پر فخر کیسے کریں؟ ایسا نہیں ہے کہ عورت خود داری کی روشن كتھايے نہ ہوں پر انہیں وقار حاصل نہیں ہے الٹے انہیں هےي نگاہ سے دیکھا جاتا ہے. 
  عورت سواتتري کے ایک پورانیک ایسا موقع کا ذکر کرنے کا لالچ سور نہیں کر پا رہا هو میرے خیال سے یہ جدید خاتون کی ذہنیت کو بڑے اچھی طرح ظاہر کرتا ہے. راجہ پرو اور اروشي ایک معاہدہ کے تحت سانند رہتے تھے. پرو کی طرف سے معاہدہ کی مانگ کرنے پر اروشي اسے چھوڑ کر چل دیتی ہے. پرو بیٹے کا حوالہ دے کر اسے روکنا چاہتا ہے لیکن وہ ایسی کسی ذمہ داری کو قبول نہیں کرتی اور اپنی آزادی کو برقرار رکھتے ہوئے چلی جاتی ہے. پرو کو ہی اولاد کا پرورش کرنا پڑتا ہے. یہ ایسا موقع پركارانتر سے یہ بتاتا ہے کہ اولاد کا پرورش عورت کے پوو کی بےڈي نہیں بن سکتا. اگر مرد اس ذمہ داری سے خود کو آزاد رکھنے میں کوئی گلان نہیں محسوس کرتا تو عورت بھی ایسا کر سکتی ہے. اس لئے مرد کو بھی بغیر کسی شہادت کا جذبہ لئے اکیلے ہی اس ذمہ داری کو اٹھانے کے لئے تیار رہنا چاہئے بلکہ اٹھا ہی لینا چاہیے. کیونکہ ستري کوئی پیڑ نہیں ہیں جو اپنے آپ پھلتي ہوں وہ مرد کی وجہ سے ہی بچہ دانی اختیار کرتی ہیں. اس لئے اولاد کے فی ان کا دايجو بھی زیادہ ہی بنتا ہے کچھ کم نہیں. لیکن مرد نے ماترتپ کو مهمامڈت کرکے خود کو اولاد کے لالن عمل کی تممےداريو سے آزاد کر لیا. ایک یہی تو بندھن ہے جو عورت کو جذباتی طور پر کمزور کر کے مرد کی تمام طرح کی بدشے قبول کے ليےے مجبور کرتا ہے. اروشي جدید دور کی ان عورتوں کی نمائندہ ہے جو اپنی آزادی پر اپنی خواہش کے خلاف دوسرے کے کسی بندھن کو قبول نہیں کرتی.
        عورت کی آزادی کے احترام کا دوسرا ایسا موقع تاریخ سے لیں. ہمارے یہاں سمراٹ اشوک عظیم بادشاہ ہوا ہے. اسی کے وقت میں كلگ میں ایک عورت ریاست کرتی تھی جس کے اقتدار میں قوم سب طرح سے مطمئن اور خوش تھی. اشوک کو اپنے اےكچھتر ریاست میں كلگ كٹے کی طرح چبھتا تھا. اس نے كنگ پر حملہ کر دیا. یہ بھی نہیں سوچا کہ ایک عورت پر حملہ کر رہا ہے یا اپنا بہت وسیع سلطنت ہوتے ہوئے بھی اس کے چھوٹے سے ریاست کو هڈپكر کچھ غلط کر رہا ہے. ایسی ریاست جس سے اس کا کوئی جھگڈا ہی نہیں ہے. كنگ پر اكرم بال دیا خوفناک جنگ چھڈ گیا. كلگ کے عوام اپنی ويراگنا رانی کی قیادت میں آخری دم تک لڈي. جب تک لڈنے قابل کوئی وہاں رہا یہ جنگ چلتی رہی. رستھل لاشوں سے پٹ گیا لیکن اشوک کو سدبددھ نہ آئی. سدبددھ آئی تو تب آئی جب کوئی لڈنے والا ہی نہ بچا. جنگ بند ہو گیا. اب سامنے لاشیں تھیں اور جنهين كلگ کا ریاست تھا. اشوک کو وےراگي ہو گیا لیکن اتنا نہیں کہ ریاست چھوڑ دیتا. اشوک نے كلگ کو اپنے سلطنت میں ملا لیا. لیکن یہ سبق ضرور مل گیا کہ اب جنگ سے کام نہیں چلے گا. یہ سبق کسی ویر بادشاہ سے لڈكر نہیں لیا گیا ایک ويراگنا رانی نے یہ متن پڑھایا کہ عورتیں چوڈي ہی نہیں پہنتی، سیج ہی نہیں ترتیب دیتی اپنے حقوق کے تحفظ کے لئے لڈكر مرنا بھی جانتی ہیں. لیکن اس جیسی ويراگنا کو نا عظیم بتایا گیا نا مثالی ہی بنایا گیا. مثالی اور عظیم ہیں رامچندر اور اشوک. عظیم حملہ، وراٹ سامراجی. ونواسي، گرواسي، تٹواسي جنوں کے سهارك، بهرگي، بهوري ثقافت وناشك. 
      بعد کی تاریخ میں چدبيبي اور عملہ سلطانہ ہیں، درگا وتي اور لکشمی ہیں، اهلياباي اور رماباي ہیں. اندرا گدھي ہے، بچےندري پال ہے، پی 0 ٹی 0 جمیلہ ہے، ثانیہ مرزا ہے ایک لمبی فہرست ہے ان کامیاب خواتین کی جو مردوں کے اقتدار کو چیلنج دے کر ان سے آگے نکل گی. انتراشٹريي خاتون یوم ان کو سےليوٹ مارنے کا دن ہے جو کہہ سکتی ہیں کہ تم نے ہمیں بھلے ہی صدیوں دبایا ہو، ستایا ہو پر تم ہماری برابری نہیں کر سکتے. ہم تم سے بہت آگے ہیں، بہت روشن ہیں، بہت اچے ہیں. 
                                                                                                                       امرناتھ 'مدھر'،...

3 टिप्‍पणियां:

  1. 1- मेरे लिए तो ये नयी जानकारी है .. धन्यवाद . .श्रद्धान्शु शेखर
    March 5 at 7:42pm via mobile · Unlike · 1

    2-आशु सैम आप इस लोककथा के माध्यम से कहना क्या चाहते हैं मधुर साहब ?????? की ये ह्रिन्यकश्यप की होलिका को मारने की साज़िश थी
    Wednesday at 9:13pm via mobile · Like
    3-जी हाँ |-अमरनाथ मधुर
    प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप को बुराई का प्रतीक कहा जाता है, भारतीय दंड संहिता यानी IPC के हिसाब से उनके अपराध क्या थे? ग्रंथों को सच्चा सबूत मानकर उनके अपराधों की लिस्ट बनाएं. बच्चों की किताबों में हमने यही पढ़ा था कि वह विष्णु की सत्ता को नहीं मानता था और खुद को भगवान की बराबरी का गिनता था. इस अपराध के लिए क्या किसी की हत्या की जा सकती है? वह भी पेट फाड़कर. हम होली को इस मिथक कथा से बाहर लाकर वसंतोत्सव के रूप में क्यों नहीं मना सकते???? प्रेम और सद्भाव का त्यौहार....
    — अशोक राठोड Ashok Sharma and 7 others.
    Like · · Share · about an hour ago near Ahmadabad, Gujarat ·
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    4-येस डियर अशोक ....एक दम सही बात है .....लेकिन आज अच्छा है की अब वो सब नौटंकी नहीं चलती क्यूँ की अब कोई अवतार पैदा होने वाला नहीं है ...जो होगा वो सविंधान के हिसाब से ही होगा ....अमित चौहान
    about an hour ago · Like · 1

    5-ये टोपिक कॉपी कर के शेयर कर रहा हूँ अपने दुसरे दलित भाईओं को जो मेरी लिस्ट है ....अमित चौहान
    about an hour ago · Like · 1

    6-वो आई पी सी के अनुसार दण्डित नहीं हुआ न ही होलिका किसी क़ानून के अनुसार आग में जलाई जा सकती है | होलिका दहन का उत्सव? बात समझ में ही नहीं आती | इसे मूल रूप में यानी की अन्नाद फसलों के पकाने के हर्शोत्सव के रूप में मनाया जाना चाहिए | लेकिन बाजार वादी कल्चर के दौर में किसानों की खुशियाँ उत्सव नहीं हो सकती वो खुश है भी नहीं | वो गम में डूबा है,रम में डूबा है और वो डूबा ही रहे इसके पुख्ता इंतजाम हैं |
    अमरनाथ 'मधुर'
    about an hour ago · Like · 2

    7-एक महिला के जलने का आप साल-दर-साल उत्सव मनाते हैं और चाहते हैं कि दुनिया आपको सहनशील, सभ्य और सुसंस्कृत भी माने! नामुमकिन है.... — अशोक राठोड
    about an hour ago · Unlike · 2

    8-वूमेंस डे और होली दोनों आगे पीछे हैं | शुभकामनाएं तो वूमेंस डे की हो सकती हैं जो महिला अधिकारों के हुंकार का दिन है | होली जैसा कि जगजाहिर है हिरन्यकश्यप की बहिन होलिका के दहन का दिन है |होलिका जो एक स्त्री है क्या उसके दहन की खुशी मनाई जानी चाहिए? मैं तो नहीं मना सकता |हाँ पकी फसलों के पर्व के रूप में इसका स्वागत है | किसानों के पसीने को सौ सौ सलाम | उनके लिए ढेर सारी शुभकामनाएं | उनकी फसल वक्त के खुदाओं की बदनजर से बच जाए यही कामना है |

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  2. 9-कोई नहीं जानता या जानकर नहीं मानता तभी तो हमारी जरूरत है | हम कलम के सिपाही यूं ही तो नहीं कहे जाते |हमें बुराई के खिलाफ लड़ना है और जो सौ बार बोला गया झूठ हिटलरी सच बन गया है उसका पर्दाफ़ाश करना है | अपनी असली विरासत की रक्षा करना हमारा फर्ज है | कुछ किताबों में लिखा है इसलिये ही उसे ज्यूं का त्यूं सच नहीं मन लिया जाना चाहिए | राक्षस, असुर, दैत्य या दानव सब बुरे थे ये हम नहीं मान सकते | आखिर बुरे थे तो दानवीर बली को क्यों याद किया जाता है वो क्या आर्य था ?.......अमरनाथ 'मधुर'
    about an hour ago · Like · 2
    10-मनुस्मृति और मनुवाद लोगो के दिमाग में है , एक एड्स की तरह काम करता रहता है ,,,,अशोक राठोड
    *** MATLAB KHALLAS ***
    53 minutes ago · Like

    11-यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते -जहां नारियों की पूजा होती है वहां नारी [होलिका ] को जिन्दा जलाया जाता है और इस पुण्य कर्म [?]को प्रतिवर्ष याद किया जाता है , उसका उत्सव मनाया जाता है | ये है हमारा प्राचीन भारत महान जिस को याद करके हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है सर जिराफ की तरह ऊँचा उठ जाता है | क्या स्त्री दाह गर्व की बात है ? ये कैसी संस्कृति है जिस पर हमें गर्व करने के लिए कहा जाता है |पश्चिम की संस्कृति स्त्री पुरुष के समानाधिकारों को मान्यता देती हैं | अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस नारी सम्मान का दिन है होलिका नारी के अपमान का |एक भारतीय और दूसरा विदेशी इसीलिए दूसरा हेय और पहला अच्छा नहीं हो जायेगा|देशी हो या विदेशी अच्छे को अच्छा औए बुरे को बुरा कहना होगा | हम कहेगे और डंके की चोट पर कहेंगे |
    .. ...अमरनाथ 'मधुर' 12-बिलकुल .. कल ये पोस्ट मैं अपनी वाल पे पोस्ट करूँगा -.श्रद्धान्शु शेखर
    Wednesday at 9:48pm via mobile · Like
    13-क्या आप दुनिया की किसी और सभ्यता(?) के बारे में जानते हैं जहां एक स्त्री की मौत पर सैकड़ों या हजारों साल से सालाना पार्टी होती हो? होली को वसंतोत्सव के रूप में मनाएं, मृत्यु के जश्न के रूप में नहीं — अशोक राठोड
    13 बहुत खूब मधुर जी !!!!! आप अपनी बात को बड़े प्रभावी तरीके से रखतें हैं और यही कारण है कि आपका सम्मान करता हूँ ,,, पर फिर भी मैं आपको ये बताना चाहूँगा (विद डू रेस्पेक्ट ) की हम लोग एक नारी का दहन का उत्सव नहीं मनाते बल्कि उस मानसिकता का दहन का उत्सव मनाते हैं जो एक बच्चे को जला के मरना चाहती थी .... इस प्रकार के व्यक्ति इसी काबिल हैं कि उनके ख़तम होने का उत्सव मनाया जाए चाहे वो महिला हो या पुरुष "!!!आशु सैम
    Wednesday at 10:45pm via mobile ·

    14- और वो नारी थी शायद इसीलिए उन्हें इतना सम्मान भी दिया गया की होलिका का पूजन भी होता है-आशु सैम

    15-आशु जी नारी का सम्मान जिन्दा जलाकर नहीं होता |ये तो सती प्रथा जैसा सम्मान है | क्या उसका समर्थन किया जा सकता है ?आप ये न भूलें कि वह किसी को प्यार करती थी और उसी दिन उसका विवाह होने वाला था |प्रहलाद राजद्रोही था उसके लिए राज्य कोई भी सजा दे सकता था ये बात अलग है कि उसकी बाल्यावस्था को देखते हुए उसे मौत की सजा नहीं दी जानी चाहिए थी पर प्रश्न तो होलिका का है उसे ही क्यों इस काम के लिए चुना गया और वो भी उसके विवाह के ही दिन ?ये उसे मारने का पूर्व नियोजित षडयंत्र नहीं था तो क्या था ?आपके कहे अनुसार मान भी लें की वो प्रहलाद की हत्या की साजिश में शरीक थी तब भी एक औरत को जिन्दा जलाना अनुचित ही कहा जायेगा|

    16-धन्यवाद मधुर जी ...मैंने अभी तक इस अंगल से तो सोचा ही नहीं था ......म्रगेश जायसवाल

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  3. 17-मैं आपकी बात काट रहा हूँ इसे आप अपने प्रति मेरा असम्मान न समझना ... आई रीयली रेस्पेक्ट यु फॉर बेंग नैस तूवार्ड्स वोमेन .... पर यहाँ बात अपने विचार को अभिव्यक्त करने की है सो मैंने किया और अगर आपका आशीर्वाद रहा तो आगे भी करूँगा |
    -आशु साम

    18-दंतकथाओं पर विश्वाश नहीं करता अँधा विश्वास करनेवालों को आईना दिखाता हूँ कि देखो ये भी है जो छुपा दिया गया है ।वरदान ?यही तो करामात है । ये वरदान देवों के विरुध्द काम नहीं आ सकते। इन कथाओं से अनेक उदाहरण मिल जायेंगे |-अमरनाथ 'मधुर'।
    19-बिलकुल मधुर साहब पर अगर उदाहरण देना है तो ऐसी भी अनेक कथाएं हैं जहां पर हमें आधी बात छुपाने की जरुरत न पड़े|-आशु सैम
    10 minutes ago via mobile · Like
    20p ठीक कहते हो लेकिन बात होली और नारी के सम्मान की है । होलिका दहन नारी के सम्मान को प्रदर्शित नहीं करता ।-अमरनाथ 'मधुर'

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