बुधवार, 27 मई 2015

भूत का मंत्र

(हरिमोहन झा की पुस्तक 'खट्टर काका' से साभार)
खट्टर काका
भूत का मंत्र
खट्टर काका भंग घोंट रहे थे। मेरे साथ एक तांत्रिक को देखकर बोले- अजी, यह कौन हैं?
मैंने कहा- यह ओझा हैं। चौधरीजी की हवेली में भूत लग गया है। वही झाड़ने के लिए आये हुए हैं।
खट्टर काका को हँसी आ गयी। बोले- यह तो स्वयं भूत हैं। जिस पर चढ़ेंगे, उसकी खैर नहीं।
ओझा बिगड़कर बोले- मैं तांत्रिक हूँ। बारह वर्ष कामाख्या में रहकर मंत्र सिद्ध कर आया हूँ। मैं क्या नहीं कर सकता।
खट्टर काका बोले- अच्छा! एक जोंक आपकी नाक में लगा दिया जाय, तो क्या उसे मंत्र के जोर से भगा दीजिएगा? खैर, वह भी जाने दीजिए। मैं मुट्ठी में एक पैसा रखता हूँ। जितना तंत्र-मंत्र आप जानते हैं, उसके जोर से उसे उड़ा दीजिए, तो मैं आपका लोहा मान लूँगा।
यह रंग-ढंग देखकर ओझा चुपके से खिसक गये। मैंने कहा- ओझा कहते हैं कि दुलहन की देह पर भूत चढ़ा हुआ है।
खट्टर काका के होठों पर मुस्कान आ गयी। बोले- अजी, चौधरी बुढ़ापे में नयी शादी कर मस्त हथिनी उठा लाये हैं। तब रात में चौधरानी के ऊपर भूत सवार हो जाता है, तो इसमें अचरज क्या?
मैंने कहा- खट्टर काका, आपको तो हर बात में हँसी रहती है।
खट्टर काका बोले- हँसी की तो बात है। 'कमजोर की लुगाई, सबकी भौजाई।' भूत को भी इसी देश में आकर देवर बनने का शौक होता है।
मैं- खट्टर काका, आप भूत नहीं मानते हैं?
ख.- अजी, मैं 'भूत', 'वर्तमान', सभी मानता हूँ।
मैं- वह भूत नहीं।
ख.- तब कौन-सा भूत?
मैं- वह भूत जो आदमी पर चढ़ जाता है।
खट्टर काका एक क्षण सोचकर बोले- हाँ, वह भूत भी मानता हूँ। अभी भी हम लोगों के माथे पर वह भूत चढ़ा हुआ है।
मैंने कहा- खट्टर काका, आप व्यंग्य कर रहे हैं। परंतु पद्म-पुराण में भूतों का कितना वर्णन लिखा है?
खट्टर काका भंग में काली मिर्च मिलाते हुए बोले- वही भूत तुम्हारे सर से बोल रहा है। बड़े-बड़े पंडितों के सर पर यह भूत सवार रहता है। जहाँ कुछ पूछो कि 'ऐसा लिखा हुआ है'। उनसे कहो- "महाराज"! लिखा है तो रहा करे। क्या आपने उसके नाम गुलामी का पट्टा लिखा दिया है? क्या आपकी बुद्धि बंधक पड़ी हुई है। दूसरे देशवाले नित्य नये-नये आविष्कार कर रहे हैं, और आप लकीर के फकीर बने हुए हैं।"
मैंने कहा- खट्टर काका, एक दिन हमारे देश में भी विज्ञान था। पुष्पक विमान था, अग्निवाण था...
खट्टर काका झल्लाकर बोले- फिर वही भूत बोल रहा है। भूत का भूत। हाथी चला गया, हथिसार चला गया। फिर भी हम हाथ में सीकड़ लिये हुए हैं, कि हमारे दरवाजे पर कभी हाथी था। अजी, जब था, तब था। अब क्या है, सो न देखो। रस्सी जल गयी, ऐंठन नहीं गयी। दूसरे देशवाले कहाँ से कहाँ पहुँच गये। और हम अपनी खटिया पर लेटे हुए, जम्हाई लेते हुए, डींग हाँक रहे हैं- "एक दिन हम लोग भी आकाश में उड़ते थे।" दूसरे देशों की आँखें भविष्य की ओर हैं; हम लोगों की भूत की ओर। यह भूत जान छोड़े, तब तो आगे बढ़ें।
मैंने कहा- खट्टर काका, आपकों भूत-प्रेत में विश्वास नहीं है। परन्तु इतने लोगों को जो भूत लगता है, सो कैसे?
खट्टर काका एक मुट्ठी सौंफ भंग में मिलाते बोले- अजी, वह है भय का भूत। अँधेरी रात में सुनसान बगीचे के बीच किसी चोर या जार को देखकर कितने लोग भय के मारे गायत्री मंत्र जपने लगते हैं। कृष्णाभिसारिका को 'यक्षिणी' समझकर उनकी धोती ढीली हो जाती है। मस्तिष्क के विकार से कोई प्रलाप करे, तो 'भूत' बक रहा है। कोई चुपचाप आँगन में ईंट-पत्थर बरसा दे, तो 'प्रेत' उपद्रव कर रहा है।' अंधेरी रात में कहीं सुनसान में आग चमके तो 'राकस' ! साँप नहीं दीखे तो भूत-साँप। आग लगने का कारण ज्ञात नहीं, तो 'ब्रह्माग्नि' । यह सब कोरा अंधविश्वास है।
मैंने कहा- खट्टर काका, आपको अलौकिक बातों में विश्वास नहीं है। मगर अभी देश में ऐसे-ऐसे गुणी हैं, जो कर्णपिशाच को वश में कर सबकुछ जान लेते हैं। मंत्र के द्वारा तिल्ली काटते हैं। कौड़ी फेंककर साँप को नाथते हैं। कटोरा चलाकर चोर का पता लगाते हैं। बैताल सिद्ध कर जो चाहें, मँगा सकते हैं। मंत्र के प्रभाव से 'मारण', 'उच्चाटन', 'वशीकरण', सब कुछ कर सकते हैं।
खट्टर काका भंग रगड़ते हुए बोले- झूठ! यदि इनमें एक भी बात सच होती, तो मैं डंके की चोट पर उसका प्रचार करता। सरकार खुफिया पुलिस की जगह कटोरा चलाने वाले को नियुक्त कर लेती। सिंचाई मंत्री पुरश्चरण के द्वारा वर्षा करवा लेते। विदेश-मंत्री राजदूतों के स्थानों पर कर्णपिशाच रख लेते। रक्षामंत्री वशीकरण मंत्र के प्रयोग से शत्रुओं को वशीभूत कर लेते। सेना के मद में जो करोड़ों खर्च होता है, वह बच जाता। देश पर कोई आक्रमण करता, तो एक झुंड तांत्रिक खड़े कर दिये जाते। वे ऐसा हुम् फट् स्वाहा करते कि सभी शत्रु भस्म हो जाते। और चिकित्सा-मंत्री महामारी के समय में महामृत्युंजय मंत्र का पाठ कराते-
त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्!
मैंने कहा- खट्टर काका, ओझा भूत झाड़ेंगे, इसलिए बहुत-सी चीजें जुटा रहे हैं। उलटी सरसों, काली गाय का गोबर, तेलिया मसान का भस्म, श्यामवर्ण घोड़े की पूँछ का बाल।
खट्टर काका भंग का गोला बनाते हुए बोले- यही ढकोसला कहलाता है। भला, उलटी सरसों और भूत में कौन-सा कार्य-कारण संबंध है?
मैंने कहा- तंत्र-मंत्र का रहस्य गुप्त होता है, इसी कारण ओझा आधी रात को एकांत में दुलहिन का भूत झाड़ेंगे।
खट्टर काका डंडा पटकते बोले- इसी का नाम है गुंडई। और देशों की विधा डंके की चोट पर चलती है और हमारे यहाँ की विधा कनफुसफी में चलती है। चोर कभी उजाला नहीं सह सकता। ठग विधा अंधकार में ही चलती है। पाश्चात्य विज्ञान प्रकाश में चमक रहा है। वह 'रेडियो', 'टेलिविजन' निकालता है, तो सारी पृथ्वी पर खिरा देता है। परंतु अपने देश के किसी पंडित को यह विधा हाथ लग जाती तो पता नहीं, कितना आडंबर फैलाते। कहते कि सीधे ब्रह्मलोक से आकाशवाणी आ रही है। यजमान को सचैल स्नान करा, अहोरात्र उपवास कराकर, शुभ नक्षत्र में स्वर्ण, धेनु, दान करवाकर, अमावस्या की रात में एकांत में श्मशान में ले जाकर, मृत व्यक्ति का स्वर सुना देते और आजीवन उसे दुहते रहते । रेडियो को चंडी की मूर्ति बनाकर, लाल वस्त्र से ढँककर, अक्षत्र-सिंदूर छींटकर, गुप्त मंत्र पढ़कर यथार्थ पर ऐसा आवरण डालते कि कोई वास्तविकता नहीं समझ सके। और मरते समय वहीं रहस्य अपने बेटे के कान में देकर उसे भी सिद्ध बना जाते।
मैंने कहा- खट्टर काका, आप मंत्र को पाखंड समझते हैं?
खट्टर काका भंग घोटते हुए बोले- अजी, मंत्र का अर्थ है परामर्श। यदि किसी स्त्री को गर्भ नहीं रहता हो, तो मैं राय दूँगा कि 'गर्भाशय की परीक्षा कराओ'। यह उचित मंत्र होगा। किंतु यदि मैं कहूँ कि 'गर्भाशय के द्वार पर सूर्य बैठे हुए हैं और जब तक वह हटेंगे नहीं, तब तक गर्भ स्थापित नहीं होगा' तो यह पाखंड होगा। यदि मैं यह भी कहूँ कि 'सूर्य को प्रसन्न करने के लिए प्रतिदिन छः हजार बार ओम् घृणिः सूर्याय नमः जपते हुए बारह ब्राह्मणों को बारह दिनों तक हलुआ-पूड़ी जिमाइए', तो यह महापाखंड होगा। यदि मैं यह भी जोड़ दूँ कि 'सूर्य के रथ का पहिया जरा अटक गया है, उसे हटाने के लिए थोड़ी सी उल्लू की विष्टा, ऊँट की लीद, चमगादर की बीट, घोडे़ की नाल, लाल मणि और बारह तोले सोना भी चाहिए' तो यह महा-महापाखंड होगा। और इसी प्रकार के महा-महा पाखंड़ी सिद्ध कहलाते हैं। उनके नाम के आगे 108 श्री जोड़ा जाता है। मेरा वश चले तो सीधे 420 लगा दूँ।
मैंने पूछा- खट्टर काका, सभी इतने तंत्र-मंत्र वाले धूर्त हैं?
खट्टर काका बोले- अजी, ये सभी ठग हैं, ढ़ोंगी हैं, वंचक हैं। खट्टर पुराण का यह श्लोक याद रखो-
तांत्रिकः मांत्रिकश्चैव हस्तरेखाविशारदः
शकुनज्ञश्च दैवज्ञः सर्वे पाखंडिनः स्मृताः
"तंत्र-मंत्र, हस्तरेखा, सगुन और भविष्य की बातें कहने वाले, ये लोग पाखंडी हैं।"
मैंने पूछा- खट्टर काका, तब सारा तंत्र-मंत्र मिथ्या है?
खट्टर काका भंग में चीनी मिलाते हुए बोले- अजी, असल में तंत्र का अर्थ है रसायनशास्त्र। दो वस्तुओं के सम्मिश्रण से किसी नये गुण का आविर्भाव हो जाता है। इसी विज्ञान से दूसरे देश उन्नति की चोटी पर चढ़ गये हैं। परंतु जो झूठ-मूठ का आडंबर रचकर तंत्र-मंत्र के द्वारा मिट्टी को चीनी, पानी को घी, पत्थर को सोना बनाने का ढोंग रचते हैं, वे ठग हैं।
मुझे मुँह ताकते देख खट्टर काका बोले- यहाँ तंत्र-मंत्र, योग, इंद्रजाल, गुहृाविधा आदि नामों से पाखंड का महासागर लहरा रहा है। देखो, अग्निपुराण में तंत्र-मंत्र द्वारा शत्रुनाश के कैसे-कैसे उपाय बताये गये हैं।
ओम् हूँ ओम् स्फें, अस्त्रं मेटय,
ओम् चूर्णय ओम् सर्वशत्रुं मर्दय
ओम् हृं ओम् हृः ओम् फट्
(अग्निपुराण 133/12)
यह मंत्र 108 बार जप करने के बाद डमरू बजा दें तो शत्रुओं की सेना में भगदड़ मच जाएगी। सभी सैनिक हथियार फेंककर भाग जायँगे।
चामुंडा देवी का मंत्र है-
ओम् चामुंडे किलि किलि ओम् हूँ फट्
ओम् फट् विदारय ओम् त्रिशूलेन छेदय,
वज्रेण हन, दंडेन ताडय ओम् पचपच,
पाशेन बंध बंध अंकुशेन कट कट,
हन हन, ओम् पातय ओम् चांमुडे
किलि किलि हुम् फट् स्वाहा
(अग्निपुराण 135/1-2)
यह मंत्र सिद्ध कर लें, तो चामुंडा सभी शत्रुओं को डंडे से पीटेगी, त्रिशूल से चीर देंगी, रस्से से बाँध देंगी, अंकुश भोंक देंगी, वज्र से चूर-चूर कर देंगी, पकाकर खा जाएँगी। सभी ऐटम बमवाले बम बोल जाएँगे। बताओ, किसी राष्ट्र के पास इन मंत्रों का जवाब है?
मुझे स्तंभित देखकर खट्टर काका पुनः बोले- हमारे तंत्रों में ऐसे-ऐसे टोटके हैं कि दुनिया सुने तो दंग रह जाय। देखो-
गृहीत्वा शुभनक्षत्रे अपामार्गस्य मूलकम्
लेपमात्रे शरीराणां सर्वशस्त्रनिवारणम्
(तंत्रसार)
"शुभ नक्षत्र में चिड़चिडी की जड़ पीसकर देह में लेप लो, तो किसी हथियार की चोट नहीं लगेगी।" दत्तात्रेय तो ऐसा उपाय बता गये हैं कि शत्रु ही नपुंसक बन जाय।
न रहे बाँस न बजे बाँसुरी। देखो-
बुधे वा शनिवारे वा कृकलां परिगृहृा च
शत्रुर्मूत्रयते यत्र कृकलां तत्र निःक्षिपेत्
निखनेत् भूमिमध्येषु उद्ध ते च पुनः सखे
नपुंसको भवेत् शत्रुः ना न्यथा शंकरोदितम्
(दत्तात्रेयतंत्र)
"शनिवार या बुधवार को एक गिरगिट पकड़कर वहाँ गाड़ दो, जहाँ शत्रु पेशाब करता है। बस, शत्रु नामर्द हो जाएगा। यह गुप्त रहस्य स्वयं शंकर ने कहा है।"
किसी स्त्री को वश में करना हो तो यह मंत्र जप लो-
हृीं कलिकायै धीमहि तन्नः कालि प्रचोदयात्
हुम् फट् स्वाहा अमुकीम् आकर्षय्
(तंत्रसार)
बस, जिसका नाम लोगे, दौड़ी तुम्हारे पास चली आयगी।
पुष्ये रुद्रजटामूलं मुखस्थं कारयेद् बुधः
तांबूलादौ प्रदातव्यं वश्या भवति निश्चितम्
(दत्तात्रेयतंत्र)
"पुष्प नक्षत्र में रुद्रजटा की जड़ पान में देकर प्रेमिका को खिला दो, वह तुम्हारी दासी बन जायगी"।
अजी, एक तरकीब ऐसी है कि प्रेमिका क्या, उसका बाप भी आकर तुम्हारे पाँव दबाने लग जायगा।
श्वेतार्कं रोचनायुक्तम् आत्ममूत्रेण पेषयेत्
ललाटे तिलकं कृत्वा त्रैलोक्यं क्षोभयेत् क्षणम्
दृष्टमात्रेण तेनैव सर्वो भवति किंकरः
(तंत्रसार)
"सफेद आक और गोरोचन को अपने मूत्र में पीसकर ललाट में तिलक कर लो, तो उसे देखते ही सब उसके दास बन जायँ।" जो काम और किसी सूत्र से नहीं हो सकता, वह मूत्र से हो जायगा।
खट्टर काका मुस्कुरा उठे। बोले- अजी, कहीं सचमुच ये सब प्रयोग न करने लग जाना। नहीं तो लेने के देने पड़ जाएँगे। ये सब अलौकिक सिद्धियाँ तांत्रिकजी के लिए छोड़ दो।
मैंने कहा- अगर उनमें वैसी शक्ति रहती तो मारे-मारे फिरते? बेचारे के घर पर छप्पर तक नहीं है।
खट्टर काका बोले- तब उन्हें कहो कि गधे की चर्बी से तिलक करें।
मुझे मुँह ताकते देखकर खट्टर काका बोले- हँसी नहीं करता हूँ। उसी तंत्र में लिखा है-
गर्दभस्य वसायुक्तं हरितालं मनःशिला
एभिस्तु तिलकं कृत्वा यथा लंकेश्वरो नृपः
"गधे की चर्बी, हरताल और मनसिल मिलाकर तिलक करे, तो लंकेश्वर की तरह राजा बन जाय।" अजी, ऐसे-ऐसे आविष्कारों को तो 'पेटेंट' करा लेना चाहिए।
मैंने कहा- खट्टर काका, तंत्रों में ऐसी-ऐसी ऊलजलूल बातें क्यों हैं?
खट्टर काका बोले- लोगों को उल्लू बनाकर अपना उल्लू सीधा करने के लिए। एक-से-एक अभिचार और व्यभिचार के प्रयोग भरे हैं। "अमुख नक्षत्र में अमुक मंत्र पढ़कर अमुक गुटका मुँह में रख लो तो अदृश्य होकर विचरण कर सकोगे"। अगर यह बात सच रहती तो यार लोग रेल ही में डेरा डाल देते। रोज मुफ्त की मलाई उड़ाते। किसी की ससुराल में जाकर मालपुओं पर हाथ फेर आते। फिर वैसे तंत्र के आगे लोकतंत्र को कौन पूछता?
मैंने कहा- खट्टर काका, ऐसी-ऐसी असंभव बातों की कल्पनाएँ अपने यहाँ क्यों की गई हैं?
खट्टर काका बोले- हम लोग कल्पना और जल्पना में विश्व का रेकार्ड तोड़े हुए हैं। मनुष्य तो मनुष्य, हमारे यहाँ की गौएँ भी तंत्र-मंत्र जानती थीं। देखो, कपिला गौ में कितनी अलौकिक शक्ति थी।
निर्गता कपिलावकत्रात् त्रिकोटिखड्गधारिणः
विनिःसृताः नासिकायाः शूलिनः पंचकोटयः
विनिःसृताः लोचनाभ्यां शतकोटि धनुर्धराः
वक्षःस्थलान्निःसृताश्च कोटिशः दंडधारिणः
विनिःसृताः पादतलात् वाधभांडास्तु कोटिशः
विनिर्गताः गुहृादेशात् कोटिशो म्लेच्छ जातयः
(ब्रह्मवैवर्त)
"कपिला गौ के मुँह से तीन करोड़ तलवारवाले, नाक से पाँच करोड़ भालावाले, आँखों से सौ करोड़ धनुष-वाणवाले, थन से करोड़ों डंडावाले, खुर से करोड़ों बाजावाले और गुदा से करोड़ों म्लेच्छ निकल पड़े।"
अब तुम्हीं बताओ, आज तक ऐसी गाय संसार के और किसी देश में पैदा हुई है? इसलिए मैं कहता हूँ कि दुनिया में हमारा जवाब नहीं। हमारे यहाँ कुत्ता भी देवता (भैरव) का वाहन समझा जाता है। उल्लू-गधे भी देवियों (लक्ष्मी, शीतला) के वाहन माने जाते हैं। उल्लू भी तांत्रिक प्रयोग में काम आता है। देखो, दत्तात्रेय तंत्र में लिखा है-
उलूकस्य कपालेन घृतेनाहत कज्जलम्
तेन नेत्रांजनं कृत्वा रात्रौ पठति पुस्तकम्
"उल्लू के कपाल में घी से प्रस्तुत काजल आँख में लगा लो और रात के अंधकार में भी पुस्तक पढ़ लो।" ऐसे टोटके उल्लूओं ही के लिए हैं।
मैंने कहा- खट्टर काका, ओझा दुलहिन के लिए यंत्र बना रहे हैं।
खट्टर काका भंग घोलते हुए बोले- उसे यंत्र नहीं, षड्यंत्र कहो। असली यंत्र है मशीन। यंत्र द्वारा आकाश में उड़ जाओ, पहाड़ उड़ा दो, समुद्र बाँध दो, पानी बरसा दो, बिजली चमका दो। और ये सभी यंत्र अन्यान्य देशवालों ने निकाले हैं। समझो तो यंत्ररूपी वैताल उन्होंने ही सिद्ध किया है। यंत्र खेत जोतता है, चावल कूटता है, रसोई बनाता है, भार ढोता है, पंखा चलाता है, गीत सुनाता है, अंतरिक्ष में भ्रमण कराता है। सभी यंत्र तो हम लोग विदेशों से ही मँगाते हैं। और बदले में कौन-सा यंत्र देते हैं? यहाँ के तांत्रिक बहुत करेंगे तो एक बाल उखाड़कर ताबीज बनाकर भेज देंगे कि- लो, सिद्धिदाता यंत्र।
मैंने पूछा- तो भूत के मंत्र में आपका विश्वास नहीं है?
खट्टर काका बोले- अजी, भूत का मंत्र हम लोग जानते ही कहाँ हैं? भूत का वास्तविक मंत्र जानते हैं पाश्चात्य देश। क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर, इन पंचभूतों को अपने वश में कर, जो चाहें, करा लेते हैं। जल, स्थल और आकाश पर विजय प्राप्त कर रहे हैं। और एक हम लोग हैं, जो नकली भूत के फेर में पड़कर उलटी सरसों ढूँढ़ते फिरते हैं। हमारे सर पर मूर्खता का जो भूत सवार है, वह भस्मीभूत हो, तब न देश का भविष्य बने। इसी कारण तो मैं भूतनाथ की आराधना करता हूँ।
यह कहकर खट्टर काका ने भंग का लोटा उठाया और शिवजी के नाम पर उत्सर्ग कर पी गये।
(हरिमोहन झा की पुस्तक 'खट्टर काका' से साभार)

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