शुक्रवार, 12 जून 2015

'तरू़-पीडा' -रामकुमार गौड

मेरठ के वरिष्ठ प्रेम गीतकार श्री राम कुमार गौड़ जी का निधन हो गया है.  साहित्य का एक विनम्र साधक चला गया. विनम्र श्रद्धांजलि .आपकी पुस्तक गीत संग्रह 'थिरक गयी नैया 'सहज प्रकाशन मुजफ्फर नगर [उ0 प्र०] से प्रकाशित से  गीत प्रस्तुत   है .

                 1

  'तरू़-पीडा'  
   
मै जीर्ण.शीर्ण तरू इस पथ का,
अब पात कहॉं,और छॉंव कहॉं?

है पातहीन डाली. डाली,
बिखरे तिनके वह नीड नहीं
पंछी सब पंख पसार उडे,
कलरव करती वह भीड नहीं।

अब मन सूखी सरिता जैसा
पतवार कहॉं और नाव कहॉं?  


थी प्यार लुटाती पुष्प लता,
भरकर निशिदिन आलिंगन में
मुस्काया तन का पात- पात
और हर्षाया मन ही मन में ।

आये कोई क्यों प्यार करे
वह ठौर कहॉं ठहराव कहॉं ?

हर दिशा हुई पतझर-पतझर
मधुमास अचानक रूठ गया
ऑंधी आयी तन कॉंप उठा
भीतर.भीतर कुछ टूट गया ।

अब प्रीत गीत की कौन कहे,
रूकते न पथिक के पॉंव यहॉं?

पुष्पित करने को प्रिया वेणी,
कितनो ने ही नित पुष्प् चुने
जाने कितने अनुबन्ध हुये,                                              
और कितने मन के गीत सुने।

कोलाहल से हट दूर कभी,
था बसा प्रीत का गॉंव यहॉं ?


             2

मरघट तक ले आने का आभार तुम्हारा
अब आगे की पगडण्डी मैं स्वयं चलूँगा
अपनापन मिट गया सभी से
अब कोई सम्बन्ध नहीं है
कभी मिलूँगा किसी मोड़ पर
ऐसा कुछ अनुबंध नहीं है
न जाने कब तक भटकूँगा किसी दिशा में
न जाने कब किसी ठौर विश्राम करूँगा
अनगिन तार बंधे राखी के
अंजुलि भर सिन्दूर लगाया
सभी विवश हो खड़े द्वार पर
कोई बंधन रोक न पाया
कितनी घृणा हुई किस से, और प्यार हुआ है
क्षमा-याचना सबसे अंतिम बार करूँगा
बचपन सोया माँ के आँचल
ममता की पा शीतल छैंया
आज तुम्हारे काँधे सोया
पाँव पसारे अंतिम शैय्या
आज विदाई करो सखे! अंतिम वेला है
चिर-निद्रा की गोद चिता पर आज जलूँगा
--डॉ. राम कुमार गौड़
                     

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